कृपाशंकर चौबे ,२५ अगस्त :: बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तसलीमा नसरीन से मेरी मित्रता पिछले दो दशकों से अधिक समय से है। जब वे कोलकाता में रहती थीं तो अक्सर उनके घर पर हम अड्डा जमाते। पटना, रायपुर और दिल्ली की यात्राएं हमने साथ-साथ कीं। तसलीमा के साथ हुई अपनी अनेक वार्ताओं में पांच को मैंने अपनी पुस्तक ‘नजरबंद तसलीमा’ के परिशिष्ट में शामिल किया है। पुस्तक शिल्पायन से छपी है। पुस्तक के एक स्वतंत्र अध्याय में तसलीमा के साहित्य की समीक्षा मैंने की है। निर्वासन में लेखिका को जो संघर्ष करना पड़ा है, उस पर भी भरसक प्रकाश डाला है।
तसलीमा को धार्मिक कट्टरता का विरोध करने की कीमत अपने देश से निर्वासन के रूप में 26 वर्षों से चुकानी पड़ रही है। तसलीमा 1994 से अपने देश से निर्वासित हैं। बांग्लादेश तो अब वे लौट नहीं सकतीं, इसलिए कोलकाता में अपने बांग्ला भाषाभाषी लोगों के बीच रहना चाहती हैं। कोलकाता में स्थाई रूप से रहने के लिए तसलीमा ने वहां एक फ्लैट ले लिया था किंतु तेरह साल पहले 21 नवंबर 2007 को कट्टरपंथियों ने कोलकाता में बवाल किया तो राज्य की तत्कालीन वाममोर्चा सरकार ने तसलीमा को कोलकाता से बाहर कर दिया। कोलकाता से वे जयपुर ले जाई गईं और वहां से दिल्ली। तब से दिल्ली में ही वे रह रही हैं। धर्मनिरपेक्षता की पैरोकार वाममोर्चा की तत्कालीन सरकार ने पहले तसलीमा की किताब ‘द्विखंडित’ पर रोक लगाई और बाद में उन्हें कोलकाता से ही भगा दिया और धर्मनिरपेक्षता की दूसरी पैरोकार कांग्रेस के नेतृत्ववाली यूपीए की तत्कालीन सरकार ने दिल्ली में तसलीमा को महीनों नजरबंद करके रखा।
धर्मनिरपेक्षता की एक अन्य पैरोकार तृणमूल कांग्रेस के शासन काल में मुट्ठीभर कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए कोलकाता पुस्तक मेले में तसलीमा की आत्मकथा के सातवें खंड ‘निर्वासन’ के लोकार्पण पर रोक लगा दी गई जबकि लोकार्पण के लिए सभागार की पहले ही बुकिंग की गई थी। मुट्ठीभर कट्टरपंथियों ने उनकी किताब का लोकार्पण नहीं होने देने की मांग की थी और आयोजकों ने उसे मान लिया। कई बार तो कट्टरपंथियों द्वारा कोई मांग किए जाने के पहले ही उन्हें खुश करने के लिए उनकी बात मान ली जाती है। तृणमूल कांग्रेस के शासनकाल में तसलीमा के कोलकाता आकर रहने की संभावना धूमिल है क्योंकि तसलीमा को कोलकाता में रहने की इजाजत देकर पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस सरकार राज्य के 27 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं को नाराज करने का खतरा नहीं मोल लेना चाहती।
मुझे लगता है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में एक धर्म के कट्टरपंथ का पोषण कर तुष्टीकरण की नीति अपनाई जाएगी तो दूसरे धर्म के कट्टरपंथियों को बढ़ने से नहीं रोका जा सकेगा। आखिर राजनीतिक पार्टियों में वह विवेक कब आएगा कि वे हर धर्म की कट्टरता का एक समान विरोध करें। कई लोग दूसरे धर्म की कट्टरता का इस भय से विरोध नहीं करते कि कहीं उन पर गैर सेकुलर होने का धब्बा न लग जाए। तसलीमा उन लोगों में नहीं हैं। वे हर धर्म की कट्टरता का बेबाकी से विरोध करती हैं। वे ऐसी लेखिका हैं जो अपने हृदय की बात सही-सही लिखती है, इसकी परवाह किए बिना कि कुछ लोग नाराज होंगे। जो लोग समाज को पीछे ले जाना चाहते हैं, उनके खिलाफ तसलीमा आवाज उठाती हैं।
तसलीमा, तुम्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं।